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Question 1:
कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
Answer:
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Question 2:
'नमक का दारोगा' कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?
Answer:
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Question 3:
Answer:
(ख) वकील अपनी ज़िम्मेदारी को नहीं समझते हैं। उन्हें मात्र धन ही महत्वपूर्ण होता है। ये बताते हैं कि धन के लिए वह किसी का भी केस ले लेते हैं और उसे बचाने के लिए हर प्रकार के हथकंड़े आजमाते हैं।
(ग) शहर की भीड़ अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी से उपेक्षित है। उसे आनंद चाहिए उसके लिए वह किसी के जीवन पर टीका-टिप्पणी से बाज़ नहीं आती है। देश तथा सत्य से उसका कोई लेना-देना नहीं है। उसे बस कुछ-न-कुछ कहना ही है।
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Question 4:
निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए-
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?
Answer:
(ख) जिस प्रकार पूर्णमासी में चाँद पूर्ण और चमकीला दिखाई देता है। वैसे ही वेतन एक महीने में एक बार मिलता है। उस एक दिन ही वेतनभोगी खुश रहता है।
(ग) हम यदि एक पिता होते तो अपने पुत्र को इस प्रकार की बात नहीं कहते। हम सब जानते हुए भी अपने पुत्र को गलत कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं करते। हमारा कर्तव्य बनाता है कि हम अपनी संतान को सही मार्ग में ले जाएँ। अतः हम एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत नहीं है।
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Question 5:
'नमक का दारोगा' कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
Answer:
(ख) बेईमानी की हार- इस पाठ में अलोपीदीन जैसा भ्रष्ट व्यक्ति जीतकर भी हार जाता है। वह अपनी बेईमानी के हज़ार हथकंड़े अपनाता है लेकिन आखिर में वंशीधर जैसे व्यक्ति को अपना मैनेजर नियुक्त करता है।
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Question 6:
Answer:
(क) अलोपीदीन ने धन का लालच देकर लोगों को अपनी अंगुलियों में नचाया था। वंशीधर के चरित्र की दृढ़ता उन्हें हरा गई। उन्होंने धन की शक्ति और लोगों के प्रति अलोपीदीन की राय बदल दी।
(ख) अलोपीदीन को अभी तक भ्रष्ट लोग मिले थे। वंशीधर की ईमानदारी का वह कायल हो गया। 40 हज़ार रुपयों का लालच भी वंशीधर की ईमानदारी खरीद नहीं पाया। अलोपीदीन के लिए यह हैरानी की बात थी।
(ग) वह जानता था कि धन का लालच देकर किसी को भी खरीदा जा सकता था। अतः वह अपने व्यवसाय के लिए ऐसे व्यक्ति की तलाश में था, जो किसी अन्य के लालच देने पर उसे धोखा न दे दे। वंशीधर के रूप में उसे ऐसा व्यक्ति मिल गया। अतः उसने तनिक भी देर न कि और वंशीधर जैसे हीरे को अपनी संपत्ति का मैनेज़र नियुक्त कर दिया। उसे अपनी संपत्ति का सही रक्षक मिल गया था।
प्रेमचंद ने जैसा अंत किया है, वैसा अंत शायद ही और कोई व्यक्ति दे पाता। हम भी ऐसा ही अंत देते। अतः इससे अच्छा अंत और कोई नहीं हो सकता है।
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Question 1:
Answer:
मेरे विचार से वंशीधर ने जो किया वह बिलकुल उचित था। उसने पहले भी अपने कर्तव्य का पालन किया था। उसने ईमानदारी से अपना कार्य किया मगर उसे उसके स्थान पर प्रताड़ना, शर्मिंदी तथा नौकरी से निकाला ही मिला। जहाँ उसे इस कार्य के लिए मान-सम्मान और पुरस्कार मिलना चाहिए था, वहाँ अपमान मिला। अलोपीदीन ने उसके गुण को समझा। अलोपीदीन की लड़ाई वंशीधर से नहीं थी, वह तो स्वयं को बचाने का प्रयास कर रहा था।
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Question 2:
Answer:
(ख) पुलिस विभाग
(ग) मंत्रालय
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Question 3:
अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्कों ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो।
Answer:
विद्यार्थी अपने अनुभव स्वयं लिखें।
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Question 4:
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थ लगा हो।
(ग) 'पढ़ना-लिखना' को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा: साक्षरता अथवा शिक्षा (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?)
Answer:
(क) एक बार हमारे घर में पापा के दोस्त का बेटा आया हुआ था। वे भैया बहुत पढ़े-लिखे थे। उन्हें अच्छी नौकरी मिली। नौकरी ने उन्हें समृद्धि और नाम दोनों दिया। उनके लिए जब विवाह की बात आई, तो वह चाहते थे कि लड़की सुंदर तथा अमीर हो। उसके गुणों से उन्हें कोई सरोकार नहीं था। उनका मानना था कि धन और सौंदर्य मनुष्य के अवगुणों पर परदा डाल देता है। उनकी इस बात से मुझे लगा कि उनका पढ़ना-लिखना व्यर्थ हो गया। पढ़ाई ने उन्हें धन तो दिया मगर उनकी सोच को विकसित नहीं किया।
(ख) मैं अपने दादा को लेकर अस्पताल गया था। मैंने दादाजी को डॉक्टर को दिखाया। दादाजी की बीमारी के विषय में मैंने खुलकर बात की। मैंने उनकी बीमारी के बारे में किसी समाचार-पत्र में विस्तारपूर्वक पढ़ा था। अतः डॉक्टर से विषय में बात कर पाया और अपनी शंकाओं का हल भी लिया। तब मुझे लगा कि मेरा पढ़ना-लिखना सार्थक हो गया।
(ग) पाठ में पढ़ना-लिखना को शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा। देखा जाए तो दोनों का अर्थ समान नहीं है। शिक्षा का अर्थ बहुत बड़ा होता है। शिक्षा वह माध्यम है, जिससे हम ज्ञान प्राप्त करते हैं। वह हमें जीविका के साधन के साथ-साथ ज्ञान के सागर में गोते लगवाती है। साक्षरता का अर्थ है किसी व्यक्ति का पढ़ना और लिखना सीखना। इसमें यह आवश्यक नहीं है कि वह संपूर्ण शिक्षा प्राप्त करे। अपना नाम लिखना जान जाए और पढ़ना सीख जाए, उसे भी साक्षर कहा जाता है।
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Question 5:
'लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।'- वाक्य समाज में स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?
Answer:
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Question 6:
Answer:
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Question 1:
Answer:
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Question 2:
इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि पथ-प्रदर्शक और आत्मवलंबन ही अपना सहायक था।
Answer:
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Question 3:
तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
Answer:
तर्क करने से मन में जो बात को लेकर संशय था, वह और पक्का हो गया। गाड़ियों को आता देखकर वंशीधर के मन में शंका हुई। जब उन्होंने पूछा और तर्क किया तो उनकी शंका सत्य में बदल गई।
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Question 4:
न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है, नाचती है।
Answer:
न्याय और नीति को पैसे के माध्यम से नचाया जा सकता है। जिसके पास पैसा है, वह न्याय और नीति को अपने हाथ की कठपुतली बना देता है।
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Question 5:
दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
Answer:
दुनिया का काम होता है किसी-न-किसी पर बोलते रहना। रात के समय में भी वे यही काम करते हैं। जब तक बुराई न कर लें उन्हें नींद भी नहीं आती है।
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Question 6:
खेद ऐसी समझ पर! पढ़ना-लिखना सब अकारण गया।
Answer:
वृद्ध मुंशी कहते हैं कि ऐसी समझदारी का क्या फायदा, जो पढ़ने-लिखने के बाद भी उसे अपना अच्छा-बुरा न सीखा सकी।
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Question 7:
धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
Answer:
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Question 8:
न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
Answer:
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Question 1:
भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों का जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप बोलचाल की भाषा के लिहाज से यह कहानी अद्भुत है। कहानी से ऐसे उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य असरदार बना है।
Answer:
चित्रात्मकता-
लोकोक्तियाँ-
1. सुअवसर ने मोती दे दिया
2. पूर्णमासी का चाँद
3. कलवार और कसाई के तगादे सहें
4. दुनिया सोती थी, जीभ जागती थी
5. छत और दीवार में भेद न होना
मुहावरे-
1. जी ललचाना
2. बरकत होना
3. फूले न समाना
4. नरम पड़ना
5. हृदय में शूल उठना
6. वश में करना
7. काना-फूसी होना
8. ईमान बेचना
9. भेंट चढ़ाना
10. हलचल मचना
11. इज़्ज़त धूल में मिलना
12. पैरों तले कुचलना
13. बौछारें होना
14. पाप कटना
15. गरदन झुकाना
16. विस्मित होना
17. नशा छाना
18. होशियार रहना
19. उछल पड़ना
20. नींव हिला देना
21. बैर मोल लेना
22. सिर पिटना
23. हाथ मलना
24. मिट्टी में मिलना
25. सीधे मुँह बात न करना
26. कालिख लगना
27. मुँह छिपाना
28. चकित होना
29. खुशामद करना
30. लज्जित करना
31. मैल मिटना
32. सिर झुकाना
33. सिर-माथे रखना
34. आँखें डबडबा आई
उर्दू-हिन्दी का प्रयोग
1. अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो।
2. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है।
3. निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
4. ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है।
5. गरज़वाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज़ को दाँव पर पाना ज़रा कठिन है।
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Question 2:
Answer:
इस प्रकार के विशेषणों का प्रयोग हुआ है-
(क) पूर्णमासी का चाँद
(ख) पीर की मज़ार
हम इस प्रकार के विशेषणों का प्रयोग कर सकते हैं-
(क) एक पल का सुख (जिस क्षण वेतन मिलता है सुख के समान आनंद आता है।)
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Question 3:
नीचे दी गई भाषा की विशिष्ट अभिव्यक्तियों को पूरे वाक्य अथवा वाक्यों द्वारा स्पष्ट कीजिएः
(क) बाबूजी आशीर्वाद, (ख) सरकारी हुक्म, (ग) दातागंज, (घ) कानपुर
दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित संदर्भ में निश्चित अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। अब आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए।
Answer:
(क) बाबूजी आशीर्वाद के रूप में मुझे सब कुछ मिल गया।
(ख) सरकारी हुक्म से कमल के घर की नीलामी हुई है।
(ग) दातागंज- दातागंज में बातें होने लगीं।
(घ) कानपुर- हम कानपुर जा रहे हैं।
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Question 1:
Answer:
इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थियों को अपने शिक्षकों के मध्य परिचर्चा का आयोजन करना पड़ेगा।
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