Board Paper of Class 10 2002 Hindi Delhi(SET 2) - Solutions
(ii) चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
(iii) यथासंभव प्रत्येक खण्ड के उत्तर क्रमश: दीजिए।
- Question 1
निम्नलिखित अपठित गद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
कहते हैं महात्मा गांधी ने नेहरू-सा नगीना चुना था। महापुरूष सचमुच सच्चे पारखी होते हैं। द्विवेदी जी ने निराला-सा नगीना परखा। प्रतिभा की जो परख उन्होंने की, उसका लोहा कौन नहीं मानेगा? निराला जी को पाकर सोसाइटी धन्य हुई। स्वामी माधवानंद जी के सामने ज्यों-ज्यों निराला जी का जौहर खुलता गया, त्यों-त्यों वह द्विवेदी जी की सौंपी हुई थाती को अनमोल रत्न की तरह जुगाने लगे।
निराला जी का शील-सौजन्य ही ऐसा था कि एक बार जिसने उस पारस को परखा वह सोना होकर रहा। 'मतवाला' के संपादक श्री महादेव प्रसाद सेठ का जब उनसे संपर्क हुआ, तब वह निराला जी के हाथों बिक-से गए। उनके समान निराला-भक्त आज तक कोई हुआ ही नहीं। यदि वह जीवित रहते, तो निराला जी को कभी कोई विक्षिप्त नहीं कहने पाता।
सोसाइटी के अन्य संन्यासी भी निराला जी का बड़ा सम्मान करते थे। वे सभी बँगाली थे और बँगला भाषा तो निराला जी के लिए मातृभाषा के समान ही थी। उन विद्वान संन्यासियों के साथ दार्शनिक बातचीत में निराला जी ही बीस पड़ते थे। बँगला-साहित्य-संबंधी संलाप में भी निराला जी ही वज़नदार निकलते थे। स्वामी वीरेश्वरानंद जी ने एक बार उनकी विलक्षण तर्कशक्ति पर विस्मित होकर कहा था, 'एमन की मानवेर मेघा?'
'मतवाला' में निराला जी की कविता तो बराबर छपती ही थी, समालोचना भी वही लिखते थे पर उसमें अपना नाम देते थे – गरजन सिंह शर्मा। उन्होंने सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं पर कुछ अंकों में लगातार लिखा। आचार्य द्विवेदी जी की इतनी अधिक ममता सरस्वती पर थी कि उन्होंने रोषवश 'मतवाला' के एक अंक का विधिवत् संपादन करके डाक से भेज दिया। द्विवेदी जी ने उस अंक को आद्योपांत रंग डाला था। उसे पाकर निराला जी इतना अधिक हँसे कि उतनी देर तक उन्हें अविराम हँसते मैंने कभी नहीं देखा। उस समय उनकी बैसवाड़ी बोली में द्विवेदी जी की स्तुति सुनने योग्य थी।
निराला जी कुछ दिन काशी में रहे थे। मैं भी उन दिनों वहीं था। प्रसाद जी (जयशंकर प्रसाद) के साथ खूब बैठक होती थी। मध्य गंगा में बजरे पर कविता-पाठ भी हुआ था। निराला जी ने हारमोनियम बजाकर 'श्री रामचंद्र कृपालु भज मन' पद गाया था। प्रसाद जी ने परोक्ष में उनकी बड़ी प्रशंसा की थी। साहित्य और संगीत, दोनों शास्त्रों में उनकी असाधारण गति देखकर प्रसाद जी बहुत प्रभावित हुए थे। प्रसाद जी राग-द्वेष रहित व्यक्ति थे। उन्होंने उसी समय निराला जी को कई बार तौलकर कहा था कि हिंदी को ईश्वर की देन है निराला। वह भविष्यवाणी आज प्रत्यक्ष है। पंचवटी कविता का पाठ करते समय निराला जी की भावभंगी देखकर मुंशी जी (नवजादिक लाल) को बंगीय रंगमंच के कुशल अभिनेताओं की भंगिमा याद हो आती थी। निराला जी की नाट्यकला भी जिसने कभी देखी है उसकी आँखों में आज भी उनका कौशल कौंधता होगा।
हिन्दी संसार में महाकवि निराला के समान त्यागवृत्ति का कोई साहित्यसेवी अब तक देखने में नहीं आया। उनकी त्याग भावना इतनी प्रबल थी कि जीवन भर काफी पैसे कमाकर भी फक्कड़ ही बने रहे। गीता के भगवद् वाक्य "त्यागाच्छांति अनंतरम्" के अनुसार उन्हें अपने त्याग-बल से ही शांति प्राप्त हो गई थी कि सब तरह की कठिनाइयों और असुविधाओं को अविचल धैर्य और संतोष के साथ झेलते चले गए। प्रकाशकों या पत्र-पत्रिकाओं से उनके लब्धांश का द्रव्य मिले या पुरस्कार का, सुबह शाम में उड़ जाता था। पर उनका एक पैसा भी फालतू खर्च में नहीं जाता था।
निराला जी तो अपने जीते-जी ठीक-ठीक परखे ही नहीं गए। उनकी दीन-बंधुता को निगोड़ी दुनिया ने विक्षिप्तता की संज्ञा दे डाली। पर कठोर सत्य तो यह है कि निराला जी ने संसार या समाज की कुत्सा पर कभी कान ही ना दिए। यावज्जीवन वीतराग की तरह रहे। ऋणी भी हुए तो परहितार्थ ही। लड़े-झगड़े तो भी न्याय के पक्ष पर अडिग रहकर स्वाभिमान के सर्वोच्च शिखर पर बैठे रहकर फकीरी-बेफिक्री से संसार की ओर उपेक्षा भरी कनखियों से देखा। स्वयं हलाहल का घूँट पीकर दूसरों को अमृत ही पिलाते रह गए। समाज में त्यागी और साहित्य में बागी इस युग में दूसरा ऐसा हुआ ही कौन?
निराला जी की रचनाओं पर विचार करने का यह अवसर नहीं है, पर यह तो विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि वे भाषा के असाधारण पारखी थे। भाषा की प्रकृति, शैली धारा और शुद्धता तथा भाषाभाव विषयक असंगतियों पर बड़ी मार्मिकता से अपनी निर्णयात्मक सम्मति व्यक्त करते थे। हिंदी के स्वरूप को निष्कलंक बनाए रखने के लिए वह शब्द-योजना और वाक्य-विन्यास पर गहरी निगाह रखते थे। भाषा संबंधी अराजकता उन्हें असह्य थी। निराला जी खड़ी बोली की नई धारा के क्रांतिकारी कवि तो थे ही, ब्रजभाषा के भी रस सिद्ध कवि थे। मारवाड़ी चित्रकार पं० मोतीलाल शर्मा (कलकत्ता) की चित्रावली में प्रत्येक चित्र के नीचे उनका लिखा ब्रजभाषा का पद्यात्मक चित्र-परिचय प्रकाशित हुआ था, जिसे देखकर वयोवृद्ध साहित्य सेवी बाबू कृष्ण बलदेव वर्मा चकित होकर निराला जी की ओर देर तक मुग्धमुद्रा से देखते ही रह गए थे।
(i) महादेव प्रसाद सेठ निराला जी का इतना अधिक सम्मान क्यों करते थे? (2)
(ii) निराला जी ने द्विवेदी जी की स्तुति क्यों की? (2)
(iii) 'हिन्दी को ईश्वर की देन हैं निराला' – ये शब्द किसने और क्यों कहे? (2)
(iv) निराला को समाज में त्यागी तथा साहित्य में बागी क्यों कहा गया है? (2)
(v) उपरोक्त अनुच्छेद का शीर्षक बताइए। (2)
(vi) 'त्यागवृत्ति' तथा 'असह्य' शब्दों का प्रयोग अपने वाक्यों में कीजिए। (2)
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- Question 2
प्यास थी इस आँख को जिसकी बनी
वह नहीं इस को सका कोई पिला
प्यास जिससे हो गयी है सौगुनी
वाह क्या अच्छा इसे पानी मिला
आँख के आँसू समझ लो बात यह
आन पर अपनी रहो तुम मत अड़े
क्यों कोई देगा तुम्हें दिल में जगह
जब कि दिल में से निकल तुम यों पड़े
हो गया कैसा निराला यह सितम
भेद सारा खोल क्यों तुमने दिया।
यों किसी का है नहीं खोते भरम
आँसुओं! तुमने कहो यह क्या किया(i) आँख को कैसा पानी मिला है? (1)
(ii) आँख को कौन-सा पानी नहीं पिलाया गया? (1)
(iii) आँख के आँसू को कोई जगह क्यों नहीं देगा? (2)
(iv) निराला सितम क्या हो गया? (2)
(v) आँसुओं से क्या भूल हो गई? (2)
अथवा
मेरे गाँव में
बड़े-बड़े अपने सपने थे
दोस्त गुरू परिचित कितने थे
बड़े घने बरगद के नीचे
बड़ी-बड़ी ऊँची बातें थीं
कहाँ गये सब?
कोई नज़र नहीं आता है
यह सब कैसा सन्नाटा है?
तोड़ो यह सन्नाटा तोड़ो
नये सिरे से अब कुछ जोड़ो
दूर वहीं से हाथ हिलाओ
मेरी वहीं से हाथ हिलाओ
मेरी अनुगूँजों में आओ
आओ सफर लगे ना तन्हा
बोलो साथ-साथ तुम हो ना(i) गाँव में घने बरगद के नीचे कैसी बातें होती थीं? (2)
(ii) गाँव में अब क्या नज़र नहीं आता? (1)
(iii) गाँव का सन्नाटा कैसे टूट सकता है? (1)
(iv) सफर का अकेलापन कैसे दूर हो सकता है? (2)
(v) गाँव के कौन से परिचित याद आते हैं? (2)
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- Question 6
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए –
(i) वह बहुत देर ............. रोता रहा। (अव्यय से वाक्यपूर्ति कीजिए)
(ii) हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व है। (समुच्चयबोधक शब्द छाँटिए)
(iii) वह धीरे-धीरे चल रहा था। (क्रियाविशेषण छाँटिए तथा उसका भेद लिखिए)
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- Question 7
निर्देशानुसार उत्तर लिखिए –
(i) छात्र घर पहुँचे। छात्र टी.वी. देखने लगे। (एक सरल वाक्य में बदलिए)
(ii) रामू आ गया। (प्रश्नवाचक वाक्य बनाइए)
(iii) शाम तक ज़रुर आ जाना। (अर्थ के आधार पर वाक्य-भेद बताइए)
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- Question 9
(i) किन्हीं दो पदों का विग्रह कीजिए – (1)
रसोईघर, चौराहा, दिन-रात(ii) नीचे लिखे किन्हीं दो पदों के समस्त पद बनाइए – (1)
शक्ति के अनुसार, माता और पिता, कमल जैसे नयन(iii) 'अंबर' शब्द के दो अर्थ स्पष्ट कीजिए। (1)
- Question 11
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन का उत्तर दीजिए – (3 + 3 + 3)
(i) गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
(ii) कवि देव ने 'श्री ब्रजदूलह' किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रुपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
(iii) 'आत्मकथा' कविता में 'उज्जवल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की', कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
(iv) 'यह दंतुरित मुसकान' कविता में कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
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- Question 14
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए – (3 + 3 + 3)
(i) सेनानी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
(ii) 'एक कहानी यह भी' रचना के आधार पर लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
(iii) 'बालगोबिन भगत' की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
(iv) 'स्त्रियों की पढ़ाई से अनर्थ होते हैं' कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
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- Question 15
(i) बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक क्यों कहा गया है? (3)
(ii) वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' किसे कहा जा सकता है? (2)
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- Question 16
'साना साना हाथ जोड़ि' रचना के आधार पर बताइए कि प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
अथवा
भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?