Board Paper of Class 10 2003 Hindi Delhi(SET 1) - Solutions
(ii) चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
(iii) यथासंभव प्रत्येक खण्ड के उत्तर क्रमश: दीजिए।
- Question 1
निम्नलिखित अपठित गद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
पता नहीं इस मूर्खता का आदिगुरू कौन है। ज़रूर कोई पच्छिम वाला होगा :
बताइए कोई मतलब है, वक्त की पाबंदी?
मेरी समझ में तो इसके दो ही मतलब निकल सकते हैं, और दोनों एक-से बेमानी।
या तो आप यह कहना चाहते हैं कि वक्त के पैर बाँध दो या फिर यह कहना चाहते हैं कि अपना पैर वक्त से बाँध दो।
जहाँ तक वक्त का पैर बाँधने की बात है, रेगिस्तान की छाती पर गगनचुंबी पिरामिड खड़े करने वाले मिस्त्र के बड़े-बड़े फिरऔन मर गए और वक्त का पैर नहीं बाँध सके, हम-आप किस गिनती में हैं। भूल जाइए। वक्त कोई बकरी नहीं है कि जो मन चाहे उसका पैर बाँध दे। वक्त शेर है। नहीं मानते? अच्छा, न सही, शेर, घोड़ा तो मानिएगा, या वह भी नहीं? चलिए, आपकी ही बात रही, वक्त शेर भी नहीं है, घोड़ा भी नहीं, गधा है। बोलिए, बाँधिएगा उसका पैर? ऐसी दुलत्ती लगाएगा कि दिन को तारे नज़र आने लगेंगे।
हाँ, जहाँ तक अपने पैर वक्त से बाँधने की बात है, उसकी आपको आज़ादी है! आपका पैर है चाहे जिससे बाँधिए। लेकिन उसमें दो कठिनाइयाँ हैं। एक तो यह कि वक्त से पैर बाँधने के लिए ज़रूरी है कि आपके पैर हों, यानी एक फ़ाजिल पैर जो बाँधा जा सके। दूसरे यह कि वह बड़ी बेमेल-सी तीन टाँग की दौड़ होगी, जैसे एक नन्हें-से दुधमुँहे बच्चे का पैर दुनिया के सबसे बड़े दौड़ाक के साथ बाँध दिया जाए। लेकिन सवाल तो यह है कि वह भी कैसे हो जब तक एक का पैर दूसरे से न बँधे। और वह पैर आप देखिए, पहले ही चक्की के पाट से बँधा है। इस नून-तेल-लकड़ी से छूटे तब तो उधर बँधे। यही बड़ी मुश्किल है।
वक्त की पाबंदी ऐसी ही चीज़ है। हम पूरब वाले, जिनकी सभ्यता कुछ भी नहीं तो छह हज़ार साल पुरानी है कभी उसके चक्कर में नहीं पड़ते। पच्छिम वाले अभी कल के लौंडे हैं, उन्हीं को यह सब खुराफात सूझती रहती है। जुमा-जुमा आठ रोज़ हुए अभी उनकी सभ्यता को, जिस समय हमारे यहाँ ऋग्वेद में उषस् का आवाहन हो रहा था उस समय वह लोग अंधकार की चादर ओढ़े, वनमानुसों की तरह जंगलों में घूमते-फिरते थे और भूख लगने पर एक-दूसरे को मारकर खा जाते थे – अभी उनको बहुत कुछ सीखना बाकी है जो हमने अपनी लंबी यात्रा में सीख लिया है – यही कि वक्त के पीछे भागना निरा पागलपन है। जिसे तुम बाँध नहीं सकते उसके साथ बँधकर तुम्हें क्या मिलेगा, सिवाए अपनी छीछालेदार कराने के? देखते नहीं, आए दिन इस तरह के कितने अनमेल संबंध तुम्हारे यहाँ टूटते रहते हैं। वैसा ही एक अनमेल संबंध यह भी है। उसमें कुछ नहीं रक्खा है। जो जिस राह जाता है उसको जाने दो, टोको मत, तुम भी अपनी राह लगो। समय के साथ यही नाता ठीक है, न तुम हमको छेड़ो, न हम तुमको छेड़ें। तुम अपने मन के राजा, हम अपने मन के राजा। तुम अपने रास्ते जाओ, हम अपने रास्ते जाते हैं। हमारा एक साथ निर्वाह नहीं हो सकता, क्योंकि हम दोनों राजा हैं, कोई भिखमंगे नहीं हैं, जो एक ही कथरी में गुज़र कर लें।
जिन लोगों ने और जिन कौमों ने समय के साथ ऐसा बेगानों जैसा सलूक किया है और समय को उसके उचित स्थान पर यानी मचिया के नीचे बिठाया है, समय उन्हीं के तलवे चाटता है। वर्ना आपने उसको मुँह लगाया और वह आपके सर पर चढ़कर बैठा।
जैसे आज बैठा है, यमदूत बनकर, ऐन कलाई पर। घड़ी न हुई हथकड़ी हुई जिसने सबको गिरफ्तार कर रक्खा है। किसी को एक मिनट रूकने-सुस्ताने की मुहलत नहीं है। बस छूट जाएगी। रेल छूट जाएगी। ट्राम छूट जाएगी। पिक्चर छूट जाएगी। नौकरी छूट जाएगी। हर समय कुछ न कुछ छूटता ही रहता है, बस एक जान है जो इतने पर भी नहीं छूटती – मगर कब तक?
जिसे देखो, घड़ी लगाए भागा जा रहा है। कोई साइकिल से भागा जा रहा है कोई स्कूटर से भागा जा रहा है, कोई मोटर में भागा जा रहा है, कोई बस में भागा जा रहा है। कोई बेबस पैदल ही भागा जा रहा है। यानी जो है वो बस भागा जा रहा है। आदमी की तरह चलना तो सब जैसे भूल ही गए हैं।
(i) लेखक ने वक्त की पाबन्दी से क्या अभिप्राय स्पष्ट किया है? (2)
(ii) व्यक्ति अपना पैर वक्त से क्यों नहीं बाँध सकता? (2)
(iii) जिस समय भारतवासी वेदों की ऋचाओं से देवताओं का आवाहन करते थे, उस समय पश्चिम के निवासियों की कैसी स्थिति थी? (2)
(iv) लेखक के अनुसार समय के साथ कैसा नाता रखना चाहिए? (2)
(v) उपरोक्त गद्यांश का शीर्षक बताइए। (2)
(vi) उपरोक्त गद्यांश से कोई दो विशेषण छाँट कर लिखिए। (2)
VIEW SOLUTION
- Question 2
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
मत काटो तुम ये पेड़
हैं ये लज्जावसन
इस माँ वसुन्धरा के।
इस संहार के बाद
अशोक की तरह
सचमुच तुम बहुत पछताओगे
बोलो फिर किसकी गोद में
सिर छिपाओगे?
शीतल छाया
फिर कहाँ से पाओगे?
कहाँ से पाओगे फिर फल?
कहाँ से मिलेगा?
सस्य-श्यामला को
सींचने वाला जल?
रेगिस्तानों में
तब्दील हो जाएँगे खेत
बरसेंगे कहाँ से
उमड़-घुमड़कर बादल?
थके हुए मुसाफ़िर
पाएँगे कहाँ से
श्रमहारी छाया?
(i) कवि अशोक की तरह पछताने की बात क्यों करता है? (2)(ii) पेड़ों को लज्जावसन क्यों कहा गया है? (1)
(iii) पेड़ कटने से क्या कुप्रभाव पड़ेगा? (2)
(iv) खेत कौन-सा रूप धारण कर लेंगे? (2)
(v) मुसाफिर किस चीज़ से वंचित हो जाएँगे? (1)
अथवा
मैं बार-बार आऊँगा
लेकर फूलों का हार
तुम्हारे द्वार।
जितने भी काँटे पथ में
बिखरे हुए पाऊँगा
आने से पहले मैं
ज़रूर हटाऊँगा।
मैं बार-बार आऊँगा।
बहुत हैं अँधेरे जग में
आँगन में देहरी पर
जहाँ तक हो सकेगा
दीपक जलाऊँगा।
मैं बार-बार आऊँगा।
मुस्कानों की खुशबू को
बिखेर हर चेहरे पर
सूरज-सी चमक सदा
हर बार लाऊँगा
मैं बार-बार आऊँगा।
(i) कवि ने बार-बार क्या लेकर आने को कहा है? (2)(ii) काँटों के विषय में कवि ने क्या कहा है? (1)
(iii) कवि दीपक जलाने की बात क्यों करता है? (2)
(iv) सूरज-सी चमक कैसे लाई जा सकेगी? (2)
(v) कवि की बार-बार आने की इच्छा क्या प्रकट करती है? (1)
VIEW SOLUTION